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हांसी के युवा नेता राहुल मक्कङ का जापान छोङ कांग्रेस में जाणा क्या मायने रखता है?

हाँसी के युवा नेता राहुल मक्कड़ का ज.ज.पा. से त्याग पत्र देकर अब कांग्रेस के हुड्डा गुट में शामिल हो गये हैं।
हाँसी मे चर्चा का विष्य बन गया है।
इसका कारण यह भी है कि राहुल के दादा स्व. का. अमीर चंद मक्कङ भी अपने तीसरे कार्य काल में हुड्डा गुट में थे। यह अलग बात है की तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा इनके घर हांसी आये थे। लफियां झलकियां भी हुई थी लेकिन हुड्डा सरकार में विधायक का.अमीर चंद मक्कङ उपेक्षित और हासिये पर ही रहे। इसका मलाल कभी कभी उनके ज्येष्ठ पुत्र स्व. रविंद्र मक्कङ अपने निकटवर्ती साथियों के सामने प्रकट करते रहते थे।
अब राहुल मक्कङ का कांग्रेस में जाने की चर्चा है कि कहीं इनका यह कदम राजनीति के लिये हानिकारक तो साबित न हो जायेगा?इसे मेरे से पहले एक बार इनके दादा के स्व. का. अमीर चंद मक्कङ के राजनैतिक सफर को देखेंगे। एक बार राहुल मक्कङ के बारे जानें।
इन्होने अपने परिवार, समर्थकों से विचार विमर्श, मंथन करने के बाद अपने राजनैतिक कैरियर की शुरुआत अजय चौटाला की पार्टी ज.ज.पा. में शामिल होकर की व 2019 के विधानसभा चुनावों में राहुल मक्कड़ ज.ज.पा. की टिकट पर हाँसी हल्के से चुनाव लड़े थे प्रभावशाली उपस्थित दर्ज करवा कर दूसरे नम्बर रहे थे।
ज.ज.पा. हरियाणा में सरकार में शामिल हुई ।
हांसी से विधायक विनोद भयाणा भा.ज.पा. से हैं।
यही नहीं दोनों पंजाबी बिरादरी से हैं।
राहुल मक्कङ हल्के मे लोकप्रिय युवा नेता के रूप में माने जाने लगे है ।
अब सत्ता का जो लाभ इन्हें व इनके कार्यकर्ताओं को मिलणे चाहिए थें। वह नहीं मिले। हां हांसी हल्के के जाट वर्कर्स का सीधा संपर्क ज.ज.पा. प्रमुख से था तो उन्हें किसी प्रकार की परेशानी नहीं थी। ऐसे में राहुल मक्कङ और उनके गैर जाट वर्कर्स काफी उपेक्षित महसूस करणे लगे।
अपनी पार्टी ज.ज.पा. से खिन्न होने का कारण सूत्रों ने बताया कि खट्टर सरकार में ज.ज.पा सहयोगी दल था और उपमुख्यमंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद भी उनके दल के पास था।सरकार में हिस्सेदारी होने के बाद भी राहुल मक्कड़ विगत काफी समय से अपने शीर्ष नेताओं के पक्षपाती आचरण के कारण खुद को उपेक्षित महसूस रहे थे ।सूत्रों का कहना है कि अपने कार्यकर्तोओं के जायज कामों को भी डिप्टी सी.एम. रहे दुष्यन्त चौटाला ने कभी भी तरजीह नहीं दी इसे लेकर राहुल मक्कड़ काफी मायूस थे और कार्यकर्ता खिन्न थे।
चंडीगढ़ से लेकर चौटाला तक पिता अजय चौटाला और पुत्र दुष्यन्त चौटाला के दरबार में हर अवसर पर हाजरी दी लेकिन लारेलप्पे के सिवाय कुछ न मिला इससे राहुल मक्कड़ के कार्यकर्ता काफी रूष्ट हो चुके थे।विगत कुछ समय से राहुल मक्कड़ के पार्टी छोड़े की चर्चाऐं जोरों पर चलती रही थीं।

गौरतलब है कि युवा नेता राहुल मक्कड़ पूर्व विधायक हाँसी स्व.का. अमीर चंद मक्कड़ के पौत्र हैं और राजनीतिक में अपने दादा की विरासत संभालने के लिये राजनीति में सक्रिय हुए है। अपने सौम्य व मिलनसार स्वभाव व निषकंलक चरित्र के कारण हल्के के लोगों का भरपूर समर्थन इन्हें मिला है।
इनके दादा स्व. का. अमीर चंद मक्कड़ हाँसी की राजनीतिक में एक मजबूत सतंभ माने जाते थे। उन्होंने अपना राजनैतिक जीवन एक साधारण कार्यकर्ता से शुरू किया था। अपना पहला चुनाव 1982 में चौ. देवी लाल की लोकदल की टिकट पर लड़कर विधानसभा मे प्रवेश किया था। और बाद में जब हरियाणा में पहली बार दलबदलू राजनीतिक शुरु हुई तो वो भजन लाल सरकार मे शामिल हो गये थे व एच.एस.एम.आई.टी.सी. के चेयरमैन बणे थे। लेकिन 1987 में कांग्रेस विरोधी लहर के चलते चुनाव हार गये थे। लेकिन विपक्ष मे रह कर खुद को इतना मजबूत किया कि 1991 के चुनावों मे टिकट नहीं मिली तो आजाद उम्मीदवार के रूप मे मैदान में उतरे और चुनाव जीत गये। इस बार फिर भजनलाल सरकार मे शामिल हुए और वन विकास निगम के चेयरमैन बने। भजन लाल हकूमत में का.अमीर चंद मक्कड़ बहुत प्रभावशाली विधायक थे और भजनलाल के वफादारों मे शुमार थे।
1995 में चुनाव हार गये। लेकिन अमीर चंद मक्कड़ कभी भी निराश नहीं हुए और एक मजबूत विपक्षी नेता बनकर हल्के में सक्रिय रहे। और अपना स्वतंत्र राजनैतिक वजूद कायम किया। उनका राजनैतिक प्रभाव इतना था कि विधायक न रहते हुए और विपक्ष मे रहते हुए उनके जायज कामों को कोई भी अधिकारी कभी नहीं टालता था। यहां तक की तत्कालीन
विधायक भी उनके से टकराने की हिम्मत न कर पाते थे।
का. अमीर चंद मक्कड़ हल्का हाँसी के एक जनप्रिय नेता नेता ही नहीं थे बल्कि हरियाणा की पंजाबी बिरादरी मे भी एक मजबूत पहचान बन कर उभरे थे।
2005 में जब कांग्रेस की टिकट के लिये लोग देहली में असरदार नेताओं के दरवाजों के बाहर सूटकेस लिये लाईन में खड़े थे तब का. अमीचंद मक्कड़ अपने कार्यकर्तोओं के बीच हाँसी मे ही मस्ती से बैठे थे। और घर बैठे ही उन्हें कांग्रेस का टिकट मिला।
तब चर्चा बणी थी अमीर चंद मक्कड़ किसी राजनैतिक दल के मोहताज नहीं थे बल्कि वो खुद एक दल थे। राजनैतिक दलों को उनकी जरूरत होती थी उन्हें किसी दल की दलाली और जी हुजुरी करणे की जरूरत नहीं थी। एक बार उन्होंने अपने साक्षात्कार के दौरान बताया था कि चुनाव में टिकट लेने से लेकर चुनाव लड़ने तक उनकी जेब से कभी भी एक रूपया खर्च नहीं हुआ। हल्के के लोग चंदा इक्ट्ठा करते थे और बहुत कम खर्च कर चुनाव लड़ते थे ।चुनाव के बाद उनके कार्यकर्ता कुछ न कुछ धन बचा कर रखते थे जो बाद में हल्के के लोगों से संपर्क कार्यो मे खर्च होता था। जिन लोगों ने स्व. का अमीर चंद मक्कड़ की जनसंपर्क,मिलनसार स्वभाव और सहनशीलता को देखा है । वह आज भी उन्हें गाहे बगाहे याद करते हैं।
1972 के बाद 2005 में हल्का हाँसी से कांग्रेस को जीत दिलवा कर मक्कड़ ने उस कंलक को धोया कि हाँसी की सीट कांग्रेस विरोधी है। यही नहीं इस हल्के से तीसरीबार जीतने वाले वह पहले नेता बने। लेकिन हुड्डा सरकार में जातिवादी मानसिकता के प्रभाव होने के कारण विधायक अमीर चंद मक्कड़ उपेक्षित और हासिये पर रहे ।
2009 में चुनाव के बाद अमीर चंद मक्कड़ हाँसी की राजनीतिक में पीछड़ गये। क्योंकि अब मैदान मे इस हल्के में एक और पंजाबी नेता विनोद भयाणा आ चुका था और चुनाव जीतकर खुद को स्थापित कर चुका था। अब का. अमीर चंद उम्र दराज हो चुके थे लेकिन पंजाबी वर्ग में ही नहीं हल्के की हर जाति वर्ग के लोगों में प्रिय थे और हर बूथ पर उन्हें वोट मिलते थे। 23 मई2015 में का. अमीर चंद मक्कड़ का देहांत हो गया उनकी अंत्येष्टि मे उमड़े जनसैलाब को देखकर ही उनके राजनैतिक कद का अंदाजा लगाया जा सकता था।
हल्का हाँसी में का. अमीर चंद के कार्यकर्तोओं और समर्थकों के आग्रह पर रिक्त स्थान को उनके पौत्र युवा राहुल मक्कड़ भरणे के लिये मैदान में उतरे और ज.ज.पा में शामिल होकर पहले ही चुनाव में ज.ज.पा. की टिकट पर राहुल मक्कड़ ने चुनाव किया मैदान मे उतरे और अपनी लोकप्रियता का अहसास करवा दिया। लेकिन समयानुसार राजनैतिक क्षेत्र मे आये बदलाव के चलते वह हल्के में खुद को व विपक्ष की मजबूत उपस्थित दर्ज न करवा सके क्योंकि ज.ज.पा. सरकार में सहयोगी दल बन चुका था। इस दौरान राहुल न तो सरकार का लाभ अपने कार्यकर्तोओं को दिला सके और न ही सरकार के भ्रष्ठाचार, कुव्यवस्था विकास कार्यों में मची लूट के विरूद्ध आवाज ही उठा सके यहां तक कि अपने कार्यकर्तोओं के जायज कामों करवाने के लिये उपमुख्यमंत्री से कभी सहयोग नहीं मिला। सूत्रों का कहना है कि
इससे ये और हल्के के कार्यकर्ता काफी मायूस थे और लगातार दल छोड़ने का दबाव बना रहे थे। क्योंकि अब चुनाव निकट हैं तो राहुल मक्कड़ और सहयोगियों ने इसे उचित समय मानकर दल से दूरी बनाना ही ठीक समझ कर त्याग पत्र दे दिया है।
अब युवा नेता अपनी राजनीति के लिये प्रदेश मे कांग्रेस के बढते प्रभाव को देखते हुए वह कांग्रेस में जाना उचित समझा है।
लेकिन कांग्रेस मे गुटबंदी के चलते कांग्रेस के हुड्डा गुट में जाना कुछ अखर रहा है। क्योंकि राहुल मक्कड़ की हल्के में लोकप्रियता और वर्तमान विधायक के प्रति नकारात्मक जनभावनाको देखते हुए हाँसी हल्के से विधानसभा का चुनाव में जीतने की संभावना बनी हुई ।
इसे लेकर पंजाबी बिरादी काफी उत्साहित भी थी।लेकिन हाँसी हल्के से पहले ही दो पूर्व.मंत्री भी कांग्रेस के अलग अलग गुटों में शामिल होकर टिकट के लिये वर्जिश कर रहे हैं।
पूर्व मंत्री अतर सिंह सैनी कु. शैलजा गुट में में शिर्ष आसन में हैं तो पूर्व मंत्री सुभाष गोयल भूपेंद्र सिंह हुड्डा खेमें में धनुर्धरासन में पोजीशन लिये हुए हैं। नये नये पूंजीपति नरेश यादव हल्के में समाजसेवी क रूप में पहचान बना कर अब वह भी हरियाणा कांग्रेस के हुड्डा गुट में शामिल हो चुके हैं जो विधान सभा चुनावों कांग्रेस की टिकट के लिये कसरत कर रहे हांसी के सभी उम्मीदवारों के अरमानों पर पानी फेर सकते हैं। क्यों कि चुनाव पैसे का खेल है जिसकी कमी नरेश यादव के पास नही है और पैसे को पानी की तरह से बहाने में मुकाबला करना किसी भी दूसरे की बस की बात नही लगती।
ऐसे में राहुल मक्कड़ के लिये हुड्डा खेमें में एक खतरा और भी है वह है वर्तमान स्थानीय विधायक विनोद भयाणा जो हाल घंङी तो भा.ज.पा. में हैं लेकिन वह पहले कांग्रेस में थे और नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा से बिजनेस संबंध और गहरी मित्रता रकिसी से छुपी नहीं है। और आज भी आपसी संपर्क के बारे में सभी जानते हैं। इसलिये इसलिए हुड्डा गुट में राहुल मक्कड़ के लिये एकबार फिर राजनीति का शिकार होने की आशंका है। कुछ अनुभवी लोगों का मानना है कि ऐसे में राहुल मक्कड़ को अपने दादा स्व. का अमीर चंद मक्कड़ के राजनैतिक जीवन से प्रेरणा लेकर खुद को स्वतंत्र रुप से राजनीतिक मे सक्रिय रखते तो अधिक फायदेमंद होता। और हाँसी हल्के से भविष्य के चुनावों की तैयारी करणी चाहिए थी। और अना मजबूत राजनैतिक वजूद तैयार करणा चाहिए था।
पंजाबी समुदाय के अनुभवी लोगों का कहणा है कि राहुल मक्कङ भले ही कांग्रेस में शामिल हो गये हैं लेकिन उनको विधान सभा के चुनावो की तैयरी जारी रखणी चाहिए।
टिकट ना भी मिले तो आजाद उम्मीदवार के तौर पर खुद को तैयार रखणा चाहिए।
हल्के में खुद को राजनैतिक तौर पर मजबूत करणा चाहिए।
जैसा कि कहावत है

खुदी को कर बूलंद इतना,
हर तकदीर से पहले,
खुदा बंदे से खुद पूछे,
बता तेरी रजा क्या है?

खैर भविष्य मे क्या होना है?
समय बतायेगा।
जगदीश, हांसी

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